क्या जालौर जिले को हरा भरा बनाना संभव है ?
- Pankaj Jain
- Mar 11, 2021
- 3 min read
Updated: Oct 28, 2024
पानी के स्त्रोत
लगभग पूरा जालौर जिला भूजल कमी की समस्या से जूझ रहा है। पानी की गुणवत्ता में गिरावट आई है। केन्द्रीय भू जल बोर्ड के अनुसार पूरा जालौर जिला भूजल का अति शोषित श्रेणी में आता है। यदि पानी के अत्यधिक उपयोग की स्थिति बनी रही तो आने वाले समय में पानी की तीव्र समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

भूजल का इस्तेमाल विवेकपूर्ण तरीके से, आधुनिक कृषि जल प्रबंधन तकनीकों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए ताकि फसलों की खेती में कम पानी का उपयोग हो। ड्रिप सिंचाई प्रणाली एवं फव्वारा के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
गेहूं (राज 911), जौ (आरडी 2508), मक्का - माही कंचन, ज्वार (सीएसएच 1,6 और 14) बाजरा (एचएचबी 67260) मूंग (K 581), सोयाबीन (पूसा 16), तिल (RT 46) ग्राउंड नट्स (RG 141), सरसों (पूस बोल्ड) जैसी फसलों का न्यूनतम भूजल निकासी के माध्यम से अधिकतम कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिए उपयुक्त फसल पैटर्न अपनाने के लिए खेती करने वालों को जागरूक और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
जालोर जिला बिखरे चट्टानी इलाके के साथ व्यापक जलोढ़ मिट्टी ( उत्तर भारत का मैदान जलोढ़ मृदा का मैदान कहलाता है। यह बहुत उपजाऊ मृदा है ) के विशाल मैदानों से ढका हुआ है। जल वैज्ञानिकों के अनुसार जलोढ़ गठन चट्टानों की तुलना में जल संग्रहण और संचरण की क्षमता बहुत अच्छी होती है। जिले में जलोढ़ गठन प्रमुख होने के नाते, भूजल संग्रहण की विभिन्न तकनीकों को अपनाया जा सकता है, जैसे कि गुल्ली प्लग, गैबियन स्ट्रक्चर, परकोलेशन टैंक, चेक डैम, सीमेंट प्लग्स, नाला बंड, रिचार्ज शैफ्ट, रेन वाटर हार्वेस्टिंग आदि के निर्माण से जलाशयों में पानी की क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

भारत की नदियां जो हमारे देश की जीवन शक्ति है, अभी भारी संकट से गुजर रही हैं। जालोर में लूनी, बांडी, सुकरी और जवाई नदियां शामिल हैं। इन सभी नदियों के बीच, सुकरी नदी क्षेत्र की प्रमुख नदी है। सुकरी नदी मूल रूप से लूणी नदी की सहायक नदी है। इन नदियों पर बड़े पैमाने से चेक डैम, सीमेंट प्लग्स, नाला बंड बनाए जा सकते हैं और खेतों में रिचार्जिंग शैफ्ट लगाए जा सकते हैं।
पेड़ और पशुओं के गोबर से समाधान संभव होगा

सद्गुरु जग्गी वासुदेव जिन्होंने रैली फॉर रिवर्स और कावेरी कालिंग जैसे अभियान चलाया, उनका कहना है कि मान लीजिए आप ने दस टन गन्ने की फसल उगाई है, तो मुख्य रूप से आपने दस टन मिट्टी खत्म कर दी है। उसको किसी न किसी रूप में भरपाई करनी होगी। मगर ऐसा कुछ नहीं हो रहा है क्योंकि मिट्टी की वापसी सिर्फ हरे पेड़, पौधों और पशुओं के गोबर से हो सकती है। लेकिन हमारे पेड़ कट चुके हैं। पशुओं और पेड़ों के बिना मिट्टी की गुणवत्ता को बरकरार नहीं रख सकते।
इसका सबसे आसान हल यह है कि हम प्रत्येक नदी के दोनों किनारों पर कम से कम एक किलोमीटर तक पेड़ लगाएं। किसानों को फल, पेड़, टिम्बर, लकड़ी और जंगल आधारित कृषि की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जहां सरकारी जमीन है, वहां जंगल उगाए जाएं।
इससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि बारिश होने पर मिट्टी नमी को थाम कर रखेगी और धीरे-धीरे साल भर नदियों को पानी देती रहेगी। लोग सोचते हैं कि पानी के कारण पेड़ होते हैं। लेकिन वास्तव में पेड़ों के कारण पानी होता है। अगर हम पेड़ लगाएंगे और पशुओं का गोबर उपलब्ध होगा तो मिट्टी और नदियों को फिर से जीवित किया जा सकेगा।
इस तरह रेन वाटर हार्वेस्टिंग करने से पानी की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है और नए जल संसाधनों का निर्माण किया जा सकता है। ऐसा करने पर खेती को प्रोत्साहन मिलेगा, रोजगार और किसानो की आमदनी बढ़ेगी, फल, पेड़, टिम्बर, लकड़ी और जंगल आधारित कृषि को बढ़ावा मिलेगा, जिससे लोगों का अन्य प्रदेशों में प्रवास और स्थानान्तरण रोका जा सकता है और बड़े पैमाने पर पौधरोपण किया जा सकता है।

ऐसा करने पर भगवान महावीर का जियो और जीने दो के आदेश का भी पालन हो सकेगा। एक तरह की हरित क्रांति की जा सकती है। पशु पक्षी पेड़ पौधे आदि सभी जीवों की रक्षा की जा सकती है।
Comentários